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Activities

11 जुलाई 2021

श्री हनुमान चालिसा (त्रिभाषानुवाद-सहित)

संस्कृत-रूपान्तरण-कर्ता
आचार्य डॉ. नारायणशास्त्री काङ्कर विद्यालङ्कर
(महामहिम-राष्ट्रपति-सम्मानित)

हिन्दी-रूपान्तरण-कर्ता
सौ. श्रीमती इन्दु शर्मा
एम.ए., शिक्षाचार्या

अंग्रेजी-रूपान्तरण-कर्ता
महामण्डलेश्वर स्वामी श्री ज्ञानेश्वरपुरीजी महाराज
विश्वगुरुदीप आश्रम शोध संस्थान, जयपुर

Hanuman cover

श्रीगुरु चरन सरोज-रज, निज मन मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
श्रीगुरु-चरण-सरोरुह-, रजसा निज-मनो-मुकुरं स्वच्छीकृत्य ।
वर्णये रघुवर-विमल-, यशो यद् विद्यते फल- चतुष्टय - दातृ ॥ (आर्या गीति)
श्री गुरुदेव के चरणकमलों की रज से अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करके मैं रघुवर श्री रामजी के विमल यश को वर्णित करता हूँ जो धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चारों फलों को देने वाला है ।
With the dust of Gurudev's lotos feet I clean my inner mirror (mind) and describe the glory of the Raghuvara, highest of the Raghu lineage, Sri Rama, the giver of four fruits of human life – dharma, artha, kama and moksha.

बुद्धि-हीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन - कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
मति-हीन-तनुं जानन्, स्मराम्यहं त्वां पवन-कुमार ! ।
बल-बुद्धि-विद्या देहि, हरस्व क्लेश - विकारान् मे ॥ ( उपगीति )
बुद्धि से हीन अपने शरीर को जानता हुआ मैं हे पवन-कुमार श्री हनुमान् जी महाराज ! आपका स्मरण करता हूँ । आप मुझे बल, बुद्धि, विद्या दीजिये और मेरे क्लेश विकारों को हर लीजिये ।
Oh Pawan kumar, son of the wind, Hanuman, knowing my own intelectual weakness/deficiency I am remembering you. Please give me strenght, intelect and knowledge, and remove all sufferings and confusions.

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
जय हनूमन् ज्ञान -गुण-, सागर जय कपीश ! लोक उज्जागरित ।
रामदूत! अतुलित-बल-, धामाऽसि अञ्जनी-पुत्र पवन-सुतोऽसि॥ (आर्यागीति)
हे ज्ञान और गुणों के सागर श्री हनुमान् जी महाराज ! आपकी जय हो, हे तीनों लोकों में उजागर कपीश जी ! आपकी जय हो, हे रामदूत श्री हनुमान् जी महाराज ! आप अतुलित बल के धाम हो, अञ्जनी के पुत्र और पवन के सुत हो ।
Oh ocean of knowledge and virtues, Shri Hanuman, glory to you! O lord of monkeys, you illuminate all three worlds. Glory to you, oh Rama's messenger, Hanuman, son of Anjani and Pawana (wind), you are the abode of uncomparable strength.

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥
अयि वज्राङ्ग-बलिंस्त्वं, महावीरोऽसि पराक्रमी च ।
कुमतिं विनिवारयसे , सुमतिमतामपि सहायकोऽसि ॥ ( उद्गीति )
हे बजरंग बली ! आप महावीर हो और पराक्रमी हो । आप कुमति को मिटा देते हो और सुमति वालों के भी सहायक हो ।
Oh, Bajrang Bali (strong as Indra's adamant). You are the great and mighty hero. You destroy negative intelect and you help the one's with a pure one.

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
हाथ वज्र और ध्वजा बिराजै ।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै ॥
काञ्चन-वर्णोऽसि त्वं, सुवेष-कर्ण-कुण्डल: कुञ्चित-केश: ।
हस्ते वज्रो ध्वजश्च, भात: स्कन्धे भाति मुञ्जोपवीतम् ॥ (आर्या गीति)
आप काञ्चन के वर्ण के जैसे हो, सुन्दर वेष वाले हो, कानों में कुण्डल धारण किये हुए हो, घुँघराले बालों वाले हो । आपके हाथों में वज्र और ध्वजा शोभित हैं, आपके कन्धे पर मूँज का यज्ञोपवीत शोभा देता है ।
Your body is shining like gold and you are beautifully dressed. Your hair is curly and kundalas (small earrings) are decorating your ears. Adamant (Vajra) and flag are in your hands, and yagyopavita (the sacred thread) made of the munja grass adorns your shoulder.

संकर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जगबन्दन ॥
बिद्यावान गुणी अति चातुर ।
शङ्करावतारस्त्वं, केसरी-नन्दन ! तेज:-प्रतापाभ्याम् ।
जगद्-वन्द्यो महानसि, विद्यावानतिचतुरोऽपि पुनस्तथाऽत्र॥ (आर्या गीति)
हे केसरी-नन्दन श्री हनुमान् जी महाराज ! आप शङ्कर के अवतार हो, तेज और प्रताप से महान् जगद्-वन्दनीय हो और फिर वैसे ही यहाँ विद्यावान् और अतिचतुर भी हो ।
Oh great Hanuman ! Son of Kesari ! You are an incarnation of Lord Shankara. You are endowed with lustre and magnificence and respected in the whole world. You are also brilliant and full of wisdom.

राम काज करिबे कोआतुर ।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ॥
राम लखन सीता मन बसिया ।
राम-कार्य-करणाया,-तुर ! प्रभुचरित-श्रवणाय सदोत्सुक: ।
राम - लक्ष्मणौ सीता, तव मनसि निवासं कुर्वते ॥ (आर्या )
श्री राम जी कार्य को करने लिये आतुर रहने वाले हे श्री हनुमान् जी महाराज ! आप अपने स्वामी श्रीरामजी के चरित्र को सुनने के लिये सदा उत्सुक रहते हो । आपके मन में श्री राम, लक्ष्मण , सीता निवास करते हैं ।
Oh Hanuman, you are eager to do Lord Ram's bidding/work! You are always anxious to hear stories of your lord Rama. In your heart Rama, Lakshmana and Seeta are living.


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
सूक्ष्म-रूपं सन्धार्य, सीतामात्मानं दर्शितवांस्त्वम् ।
विकट-रूपं सन्धार्य, रावण-लङ्कां ज्वालितवांश्च ॥ (आर्या)
हे श्रीहनुमान् जी महाराज ! आपने सूक्ष्म रूप धारण करके सीता माता को अपने आपको दिखाया था और विकट रूप धारण करके रावण की लङ्का को जला दिया था ।
Oh great Hanuman! In your minute form you have shown yourself to mother Seeta, and in your monstruous form you burned down Ravana's Lanka.

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्रजी के काज सँवारे ॥
भीम-रूपं सन्धार्य, संहृतवान् भीषणानसुरान् ।
रामचन्द्रस्य कार्यं, समपादयस्त्वमेव सकलम्॥ (उपगीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज ! भीम रूप धारण करके आपने भीषण असुरों का संहार किया था और आपने ही श्री रामजी के सभी कार्यों को सम्पन्न किया था ।
Oh Hanuman, by taking your terrible form you have destroyed horrible demons and accomplished all the works of your Rama !

लाय संजीवन लखन जिवाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
आनीय सञ्जीवनीं, लक्ष्मणमुदजीवय: सद्य: ।
हर्षित: श्रीरघुवीर, उरसा त्वामात्मन: समयोजयत् ॥ ( उद्गीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज ! आपने तत्काल सञ्जीवनी लाकर लक्ष्मण जी को उज्जीवित कर दिया था । इससे हर्षित हुए श्रीरामजी ने आपको अपनी छाती से लगा लिया था ।
Oh Hanumanji, overjoyed/exultant Rama embraced you when you have saved Lakshmana's life by quickly bringing plant Sanjivanee.

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरत हि सम भाई ॥
रघुपतिर्बहु - प्रशंसां, कृतवांस्तव प्रोवाचैवं हि ।
त्वमसि मे भरत-तुल्य:, प्रियतम-भ्राता संसारे ॥ (उपगीति)
रघुपति श्रीरामजीने आपकी बहुत प्रशंसा की थी और इस प्रकार आपको कहा था कि तुम संसार में मेरे भरत के तुल्य प्रियतम भ्राता हो ।
The lord of Rahu's lineage Rama praised you so much and said that in this world you are like his dearest brother Bharat.

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सहस-वदन: शेषस्,-त्वदीय-यशो गायति बहु बहु ।
एवमुक्त्वा श्रीपति:, स्व-कण्ठेन त्वां योजितवान् ॥ (उपगीति)
हजारों मुखों वाले शेषनाग तुम्हारा बहुत बहुत यशगान करते हैं । इस प्रकार कह कर श्रीपति रामजी ने आपको अपने कण्ठ से लगा लिया था ।
Lord Rama embraced you saying: “King of the snakes, Shesha Naga, sings your praises with its thousands mouths.”

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहॉं ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहॉं ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
सनकादिक-ब्रह्मादि,-मुनीशा नारद-शारदा-सहित: ।
अहीश: शेषनागो, यम: कुबेरो दिक्पाला एते ॥ (गीति)
कवि-कोविदा: केऽप्यत्र, तव यशो गातुं हि कथं समर्था: ?।
उपकृतवान् सुग्रीवं, रामेण सम्मेल्य राज्यं प्रादा: ॥ (गीति)
सनत्कुमार, सनातन, सनक, सनन्दन आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवता, नारद और शारदा के सहित सर्पराज शेषनाग, यमराज, कुबेर, दिक्पाल ये सब कवि और विद्वान् कोई भी यहाँ आपके यश को गाने में कैसे समर्थ हैं ? हे श्री हनुमान् जी महाराज ! आपने तो सुग्रीवजी को उपकृत कर दिया था, श्री रामजी से मिलवा कर उन्हें राज्य दिलवा दिया था ।
Sanatkumara, Sanatana, Sanaka, Sanandana (four sons of lord Brahma) and other Munis, Brahma and other gods, Narada and Sharada (Saraswati) together with Sheshanaga, Yamaraja (god of death), Kubera (god of wealth), Dikpalas (protectors of all directions), poets and learned ones, who of all of them is capable to sing your glory? Oh Hanumanji, by introducing Sugriva to Rama you have obliged him by delivering him his kingdom.

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
तव मन्त्रं विभीषणो , मानितवाँल्लङ्केश्वरश्च समजायत ।
वृत्तमिदं समस्तोऽपि , संसारो जानातीह नास्ति शङ्का ॥ (आर्या गीति)
आपके परामर्श को विभीषण ने मान लिया था और उसके परिणामस्वरूप वे लङ्कापति बन गये । इस घटना को सारा संसार जानता है । इसमें शङ्का नहीं है ।
Vibheeshan accepted your advice and because of that he became a king of Lanka. This is known in the whole world. There is no doubt in it.

जुग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
सहस्र-योजन-दूरेऽ,-पि स्थितं भानुं मधुर-फलं विज्ञाय ।
तमुपसृत्य निगीर्णवान् , कस्य नहि विदितं वृत्तमेतदद्भुतम् ॥ (आर्या गीति)
हजारों योजनों दूर भी स्थित सूर्य को हे श्री हनुमान् जी महाराज ! आपने मीठा फल जान कर और उसके पास पहुँच कर उसको निगल लिया था । यह अद्भुत घटना किसको ज्ञात नहीं है ?
Oh Hanumanji, you have thought that Sun, which is thousands of kilometers far away, is just a sweet fruit and when you reached it you have swallowed it. Who does not know this amazing thing?

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लॉंघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत् के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
प्रभु-मुद्रिकां संरक्ष्य, मुखे जलधिमलङ्घथा इहाश्चर्यं न ।
जगद् -दुर्गम -कार्याणि, भवन्ति सुगमानि त्वदीयानुग्रहात् ॥ (आर्या गीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज! आप प्रभु श्री रामजी की दी हुई अँगूठी को मुँह में रखकर समुद्र को लाँघ गये थे । इसमें आश्चर्य नहीं है । आपके अनुग्रह से संसार के दुर्गम से भी दुर्गम कार्य सुगम हो जाते हैं ।
Oh Hanumanji, it is not strange that you have put ring, given by Rama, in your mouth and jumped over the ocean. With your grace even the most insurmountable / difficult works / deeds become easy.

राम दुवारे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
श्रीराम-हर्म्य-द्वार,-रक्षकोऽसि त्वं हनूमन् ! सदैव ।
तवाज्ञां विना तत्र न, प्रवेशो लभ्यते जातु केनापि ॥ (गीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज ! आप श्रीरामजी के महल के द्वार के सदा ही रक्षक हो । आपकी आज्ञा के बिना किसी के भी द्वारा कभी वहाँ प्रवेश प्राप्त नहीं किया जाता है ।
Oh Hanumanji, you are always guarding the gate of Rama's palace. Without your permision nobody can pass through any gate.

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्‍छक काहू को डरना ॥
तव शरणागतेभ्योऽत्र, सर्वेभ्य: सर्वाणि सुखानि सुलभानि ।
यदाऽसि तद् -रक्षी त्वं, किं ते बिभ्यतु कस्माच्चित् कथं पुन: ? ॥ (आर्या गीति)
आपकी शरण में आये हुए सभी को यहाँ सब सुख सुलभ हो जाते हैं । जब आप उनके रक्षक हो, तब वे फिर किसी से किस लिये डरें ?
Who ever comes under your protection can achieve all happiness. If you are their protector, from whom they should be afraid ?

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तेंकॉंपै ॥
स्वीयं तेजस्त्वमेव, सम्भालयसि न त्वदितरोऽत्र।
लोकत्रयं कम्पते, तावकीन-सिंह-गर्जनया ॥ (उपगीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज! अपने तेज को आप ही सम्भालते हो, यहाँ आपके अतिरिक्त अन्य नहीं । आपकी सिंह-गर्जना से तीनों लोक भी काँप उठते हैं ।
Oh Hanumanji, nobody else but you only are capable of controling your strenght/shine. Your lion like roar shakes all three worlds.

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥
भूत-पिशाचा निकटे, नायान्ति महावीर-नाम-श्रावणात् ।
तव निरन्तरं जपो हि, विनाश्य रोगान् हरते समस्त-पीडा: ॥ (आर्या गीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज! आपके 'महावीर' इस नाम को सुनाने से भूत पिशाच निकट नहीं आते हैं । आपके 'महावीर' इस नाम का निरन्तर किया गया जप निश्चित रूप से रोगों को विनष्ट करके समस्त पीडाओं को हर लेता हैं ।
Oh Hanumanji, by hearing your name Mahaveer, a great hero, ghosts and demons dare not to approach. By constant repetition of this name, Mahaveer, surely all diseases and pains dissapear.

संकट ते हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
सङ्कटतो हनुमांस्त्वं, मोचयसि यो मन:-क्रम-वचनैर्ध्यायेत् ।
सर्वेषु रामस्तप,-स्वी राजा तस्य कार्यं त्वमसाधय: ॥ (आर्या गीति)
सङ्कट से आप श्री हनुमान् जी उसको छुडा देते हो, जो मन क्रम वचनों से आपका ध्यान करता है । श्रीरामजी सब पर तपस्वी राजा हैं । आपने ही उन के सभी कार्यों को साधा है ।
Who ever is concentrated on you in his mind and speech is saved from all problems, by you. Shri Ram is an ascetic king, and you have done all his works.

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
य: कोऽपि मनोरथमा,-नयेत् सोऽमित-जीवन-फलमाप्नोति ।
चतुर्युगेषु प्रताप:, प्रसिद्धस्ते जगत्युज्जागरित: ॥ (गीति)
हे श्री हनुमान् जी महाराज ! जो कोई भी व्यक्ति अपना मनोरथ आपके पास लाता है, वह अमित जीवन फल आपसे प्राप्त कर लेता है । आपका प्रताप चारों युगों में प्रसिद्ध है - यह बात जगत् में जागृत है ।
Oh Hanumanji, the one who expresses his desires to you, receives immeasurable fruits of life from you. In the whole world it is known that your glory is celebrated in all four yugas (eons).

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
साधु-सन्त-रक्षकोऽसि, असुर-निकन्दन ! राम-प्रियोऽसि ।
अष्टसिद्धि-नवनिधिदो, भव वरमिममदाज्जानकी माता ॥ (उद्गीति )
हे असुरों के नाशकर्त्ता श्री हनुमान् जी महाराज ! आप साधु सन्तों के रक्षक हो और श्री रामजी के प्रिय हो । " अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व- इन आठ सिद्धियों के और पद्म, महापद्म, शङ्ख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, वर्च्च - इन नौ निधियों को देने वाले बन जाओ " यह वर आपको जानकी माता ने दिया है ।
Oh Hanumanji, destroyer of demons, you are the protector of saints and beloved of Rama. Janaki mother gave you the blessing of eight siddhis (perfections) (anima and mahima - becoming small as an atom or infinitely large, garima and laghima - be able to become infinitely heavy or light, prapti - the power of obtaining everything, prakamya - realizing all desires, ishitva - absolute lordship and vashitva - the power to subjugate all) and nine nidhis (padma, mahapadma, shankha, makara, kacchapa, mukunda, kunda, nila and varcca).

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥
श्री राम-रसायनं तु, वरीवर्त्ति तव समीप एव ।
तिष्ठ सर्वदैव त्वं, रघुपति-दास: श्रीहनूमन् ॥ (उपगीति)
'श्रीराम-' नामरूपी रसायन तो आपके पास है ही । इसके सेवन से वृद्धावस्था और अन्य रोग तो आपको होते ही नहीं
हैं । हे श्री हनूमान् जी महाराज ! आप सदा ही रघुपति श्री रामजी के दास बने रहो ।
You have the elixir in the form of the name ' Shree Rama '. By consuming it neither old age nor diseases can approach you. Oh Hanumanji, be servant of Rama, lord of Raghu lineage forever !

तुम्हरे भजन राम को भावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अन्तकाल रघुवर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
तव तु भजनकृद् रामं, विन्दति नश्‍यति तज्जन्म-जन्म-दु:खम् ।
अन्ते रघुपुरं याति, जातश्चेदत्र हरि-भक्तो वक्ष्यते ॥ (आर्या गीति )
हे श्री हनूमान् जी महाराज ! आपका तो भजन करने वाला व्यक्ति श्री रामजी को प्राप्त कर लेता है, उसका जन्म-जन्म का दु:ख नष्ट हो जाता हैं । अन्त में वह रघुपुर में चला जाता है । यदि वह यहाँ मृत्युलोक में जन्म लेता है तो भक्ति करने से हरि भक्त कहलायेगा ।
Oh Hanumanji, the one who sings your bhajans realizes Shri Rama, and sufferings of many lives are destroyed. At the end (of his life) he reaches the place of Raghus. If he is born in mortal world, then, by practicing bhakti (devotion) he will be called a devotee of Hari.

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
अन्य-देवताश्चित्ते , न धरतीह हनूमत्सेवी ।
समस्त-सुखमवाप्नोति, नात्र कार्या काऽपि शङ्का हि ॥ (उपगीति )
श्री हनुमान् जी की सेवा करने वाला व्यक्ति दूसरे देवताओं को अपने चित्त में नहीं रखता है । वह श्री हनुमान् जी की सेवा करने से समस्त सुखों को प्राप्त कर लेता है । इसमें कोई भी शङ्का नहीं करनी चाहिये ।
Other gods do not even enter the mind of the one who serves Hanuman, and by this service he achieves all happiness. There should not be any doubt.

 

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल वीरा ॥
सङ्कटं नश्यति तस्य, पीडा च लुप्यति सम्‍पूर्णा: ।
य:स्मरति हनूमन्तं, बल-वीरं विशुद्धान्तरात्मना हि ॥ (उद्गीति)
संकट उसका नष्ट हो जाता है और पीडा भी उसकी लुप्त हो जाती है, जो विशुद्ध अन्तरात्मा से बलवीर श्री हनुमान् जी महाराज का स्मरण करता है ।
Whoever remembers mighty Hanuman with pure thoughts, all his problems are destroyed and suffering disappears.

जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥
जय जय जय हनुमंस्त्वं, कृपां कुरुष्व गुरुवद् मयि दीनजनेऽत्र ।
शतं पठति च य एतद्, बन्धन-मुक्तोऽसौ महासुखमाप्नोति ॥ (आर्या गीति )
हे श्री हनुमान् जी महाराज! आपकी जय हो, जय हो, जय हो । आप इस मुझ दीनजन पर गुरु की भाँति कृपा कीजिये । जो इसको सौ बार पढता है, बन्धन से मुक्त हुआ वह महासुख प्राप्त कर लेता है ।
Oh Hanumanji, glory to you ! Glory to you !! Glory to you !!! Be merciful to me like a guru on the poor person. Whoever reads this (chaleesa) hundred times, becomes free from all attachements and achieves greatest happiness.

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
पठति य इमां हनुमतश्,-चत्वारिंशिकां स सिद्धिमाप्नोति ।
इदमसत्यं नैवास्ति, साक्षी वरीवर्त्तीह गौरीश: ॥ (गीति)
जो यह ' हनुमान चालीसा ' पढता है, वह सिद्धि प्राप्त कर लेता है । यह असत्य नहीं है । इसमें गौरीपति श्रीशङ्कर भगवान् साक्षी हैं ।
Whoever reads this Hanuman Chalisa will get all perfections. This is the truth. Husband of Gauri lord Shankara is its witness.

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ ! हृदय महँ डेरा ॥
तुलसीदास एषोऽस्ति, सदा श्रीहरि-रामदासो हि ।
अत: कुरु निवासं मे, हृदि नित्यमेव हनुमन् नाथ !॥ (उपगीति )
यह तुलसीदास सदा ही श्रीहरि राम जी का दास है । इसलिये हे श्री हनुमान् नाथ जी ! आप मेरे हृदय में नित्य ही निवास करें ।
Tulsidasa is for ever servant of Shri Hari Rama. Therefore oh Hanumanji, always live in my heart.

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
पवन-सुत सङ्कट-हरण, हनूमन् मङ्गल-मूर्त्ति-रूप ।
सराम-लक्ष्मण-सीत:, सदैव वस मम हृदि सुरभूप ॥ (उपगीति)
हे देवराज सङ्कट हरण मङ्गलमूर्त्ति-रूप श्री हनुमान् जी महाराज ! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी के साथ आप सदा ही मेरे हृदय में निवास करते रहना ।
Oh king of the gods, destroyer of problems, embodiment of happiness Hanumanji, please always reside in my heart with Shri Rama, Lakshmana and Seeta.

Complete Hanuman Chalisa in PDF

 

।। इति ।।

पत्रिका